हनुमानजी का प्रबंधन

हनुमान ही है जो हमें सिखाते हैं कि आम बने रहकर भी कैसे व्यवहार करें, कैसे बोलें, तैयारी करें, काम करें और जीएँ|

 

गुण पूजक भारतीय मान्यता में हर देवता की एक विशिष्ट छवि है| हनुमान की भी अपने प्रबंधन गुणों के साथ ऐसी छवि है जिसे हर युवा अपनाना चाहता है| आज देश के हर कोने में हनुमान का मंदिर मिल जाएगा| हनुमान ही हैं जो हमें सिखाते आम बने रहकर भी कैसे व्यवहार करें, कैसे बोलें, तैयारी करें, काम करें और जीएं| हनुमान कपि होने के बावजूद सुग्रीव की वानर सेना का भाग नहीं थे| उनका समर्पण राम के प्रति था और उन्होंने वानर सेना के साथ और उससे अलग रहकर भी राम की जो सेवा की वह आज तक अनुकरणीय है| रामायण में हनुमानजी का प्रबंधन राम के वनवास के दौरान दिखाई देना शुरू होता है|

वन में राम के मिलने के साथ ही हनुमान जी को लगता है कि उन्हें जो लक्ष्य था वह मिल गया है| इसके बाद उन्होंने खुद को सर्वस्व राम को ही समर्पित कर दिया| वर्तमान मैनेजमेंट में भी यही बात है कि मैनेजमेंट फील्ड में एक बार आप जिस कंपनी या प्रोफाइल पर जाते हैं, वहां अपना सौ फीसदी देना होता है| मैनेजमेंट का दूसरा सबसे महत्वपूर्ण काम है कंपनी के लिए आवश्यक  निर्णयों में उचित सलाह देना| हाँलाकि सीता की खोज और लंका पर विजय की यात्रा राम की थी, लेकिन सुग्रीव से दोस्ती करने, बाली का वध करने, सीता की खोज के लिए वानरों का प्रबंधन करने, रावण की सभा में दूत बनकर पहुँचने में उनका कौशल दिखाई देता है|इस काम के दौरान ही हनुमान अपनी खोई हुई शक्तियों को भी हासिल करते हैं|

 

राह को आसान बनाना

हो सकता है राम और लक्षमण अपने तरीके से सीता को खोज लेते अथवा रावण और उसकी सेना का वध कर देते, हनुमान के प्रबंधन गुणों ने राम की राह को आसान बना दिया| राम से मिलने के बाद उन्होंने बाली और सुग्रीव की लड़ाई के बारे में श्रीराम को जानकारी दी| बाली को मारने का तरीका बताया और सुग्रीव का राज्याभिषेक कराकर वानर सेना को साथ में लिया| इसके बाद शुरू हुआ सीता को खोजने का काम| एक स्मार्ट मैनेजर की तरह हनुमान ने खुद सबसे कठिन रस्ते को चुना और साथियों को अपेक्षाकृत सुगम रास्तों पर भेजा| काम में आई बाधा ने हनुमान की खोई शक्तियों को लौटा दिया|भले ही इस काम में जामवंत माध्यम बने, लेकिन अंततः हनुमान ने अपनी शक्तियों को वापस पा लिया| आधुनिक प्रबंधन में भी कमोबेश यही हालात होते है| कठिन परिस्तिथि न केवल अम्ल परिक्षण करती हैं, बल्कि प्रबंधन के गुणों में बढ़ोत्तरी भी करती है|

 

पूर्व तैयारी और त्वरित निर्णय

सीता की खोज के लिए रवाना होने से पूर्व हनुमानजी को पूर्ण विश्वास था कि उन्हें सीताजी मिल ही जाएंगी| ऐसी में उन्होंने राम से उनकी निशानी मांगी, ताकि वे सीता को भरोसा दिला सकें कि वे राम के ही दूत हैं| बाद में अशोक वाटिका में सीता के ऊहापोह को उसी अंगूठी को दिखाकर हनुमान ने ख़त्म किया था| आधुनिक मैनेजमेंट में भी कमोवेश ऐसे ही विश्वास और पूर्व तैयारियों की जरुरत है| प्रोजेक्ट की शुरुआत में ही भविष्य में आने समस्याओं के हल साथ लेकर चला जाए तो फंसने की आशंका कम रहती है|

सीता द्वारा पर पुरुष को नहीं छूने की स्थिति को हम प्रबंधन सीमा कह सकते हैं| हनुमान चाहते तो सीता को ज्यों का त्यों उठाकर ला सकते थे, लेकिन सीता उन्हें छू नहीं सकती थी| ऐसे में हनुमानजी ने सीमाओं को माना और राम व उनकी सेना के साथ लौटने का निर्णय किया| यह हनुमान का विपरीत परिस्तिथि में त्वरित निर्णय था|

 

गजब का आत्मविश्वास

अपने स्वामी में अगाथ आस्था और उनके लिए कुछ भी कर गुजरने की सोच को आज भी अपनाया जा सकता है| रावण के सैनिक द्वारा पकड़े जाने पर हनुमान ने अपना आत्मविश्वास नहीं खोया| उन्होंने राम के दूत के तौर पर रावण से बात की| जब रावण नहीं माना और उनकी पूंछ में आग लगा दी तो उन्होंने बिना शीर्ष नेतृत्व के संकेत का इंतजार किए अपने स्तर निर्णय किया और पूरी लंका में आग लगा दी| लंका में अपने पहले ही भ्रमण में हनुमान ने विभीषण की खोज भी की|

विभीषण ने हनुमान को अपना दुख बताया कि वे दांतों के बीच जीब्हा की तरह लंका में रह रहे है| चारों ओर अलग क्षमताओं वाले लोग हैं और वे खुद को वहां फंसा हुआ सा महसूस करते हैं| हनुमान ने इस स्थिति को समझा कि दुश्मन की नगरी में एक व्यक्ति को अपने पक्ष में किया जा सकता है| विभीषण पहले से श्रीराम के भक्त रहें हो, लेकिन लंका की अपनी पहली ही यात्रा में हनुमान ने उन्हें श्रीराम की सेना का हिस्सा बना दिया था| बाद में विभीषण ने ही राम को बताया कि रावण की नाभि में जमा अमृत कलश को नष्ट किये बिना रावण नहीं मर सकता|

सूक्ष्म और विराट रूप

हमेशा ताकत ही काम नहीं करती बल्कि समय और मांग के अनुसार अपने रूप में भी परिवर्तन करना पढता है| हनुमान ने ही सिखाया कि जब अपना विराट रूप दिखाना होता है और जब लंका में घुसना हो तो सूक्ष्म रूप भी अपनाना पड़ता है| मानव संसाधन के बदलते रूप में आज भी ऐसे कार्मिकों की जरुरत बताई जा रही है, जो संस्थान में हर तरह का काम कर सके|

उन्हें अपने मूल काम के अलावा कंपनी के अन्य विभागों के काम की जानकारी भी होनी चाहिए| आवशयकता होने पर वे संदेशवाहक अथवा मालिक के प्रतिनिधि के तौर पर काम कर सकें| इसमें भी मानव संसाधन विभाग की भूमिका जामवंत की तरह महत्वपूर्ण हो जाती है, जो हनुमान जैसे कार्मिकों को उनकी क्षमताएँ याद दिलाएं|

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